नव तन कनक-किरण फूटी है। दुर्जय भय-बाधा छूटी है। प्रात धवल-कलि गात निरामय मधु-मकरन्द-गन्ध विशदाशय,...
लघु-तटिनी, तट छाईं कलियाँ; गूँजी अलियों की आवलियाँ। तरियों की परियाँ हैं जल पर, गाती हैं खग-कुल-कल-कल-स्वर,...
चिर-समाधि में अचिर-प्रकृति जब, तुम अनादि तब केवल तम; अपने ही सुख-इंगित से फिर हुए तरंगित सृष्टि विषम।...
क्यों मुझको तुम भूल गये हो? काट डाल क्या, मूल गये हो। रवि की तीव्र किरण से पीकर जलता था जब विश्व प्रखरतर,...
तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर, जो द्वार-द्वार फिर कर भीख माँगता कर फैला कर। भूख अगर रोटी की ही मिटी,...
विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न-- अमल- कोमल -तनु तरुणी--जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में,...
रंगभरी किस अंग भरी हो? गातहरी किस हाथ बरी हो? जीवन के जागरण-शयन की, श्याम-अरुण-सित-तरुण-नयन की,...
भव-सागर से पार करो हे! गह्वर से उद्धार करो हे! कृमि से पतित जन्म होता है, शिशु दुर्गन्ध-विकल रोता है,...
पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा। भुक्ति-मुक्ति में गान तुम्हारा। आंख-आंख पर भाव बदलकर, चमके हो रंग-छवि के पलभर,...
हरि का मन से गुणगान करो, तुम और गुमान करो, न करो। स्वर-गंगा का जल पान करो, तुम अन्य विधान करो, न करो।...
तुम आये, कनकाचल छाये, ऐ नव-नव किसलय फैलाये। शतशत वल्लरियाँ नत-मस्तक, झुककर पुष्पाधर मुसकाये।...
माँ अपने आलोक निखारो, नर को नरक-त्रास से वारो। विपुल दिशावधि शून्य वगर्जन, व्याधि-शयन जर्जर मानव मन,...
अपने अतीत का ध्यान करता मैं गाता था गाने भूले अम्रीयमाण। एकाएक क्षोभ का अन्तर में होते संचार उठी व्यथित उँगली से कातर एक तीव्र झंकार,...
भव-अर्णव की तरुणी तरुणा । बरसीं तुम नयनों से करुणा । हार हारकर भी जो जीता,-- सत्य तुम्हारी गाई गीता,--...
ऊँट-बैल का साथ हुआ है; कुत्ता पकड़े हुए जुआ है। यह संसार सभी बदला है; फिर भी नीर वही गदला है,...
बीत चुका शीत, दिन वैभव का दीर्घतर डूब चुका पश्चिम में, तारक-प्रदीप-कर स्निग्ध-शान्त-दृष्टि सन्ध्या चली गई मन्द मन्द प्रिय की समाधि-ओर, हो गया है रव बन्द...
दलित जन पर करो करुणा। दीनता पर उतर आये प्रभु, तुम्हारी शक्ति अरुणा। हरे तन-मन प्रीति पावन, ...
विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न-- अमल-कोमल-तनु तरुणी--जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में,...
हे जननि, तुम तपश्चरिता, जगत की गति, सुमति भरिता। कामना के हाथ थक कर रह गये मुख विमुख बक कर,...
क्या गाऊँ? माँ! क्या गाऊँ? गूँज रहीं हैं जहाँ राग-रागिनियाँ, गाती हैं किन्नरियाँ कितनी परियाँ कितनी पंचदशी कामिनियाँ,...
रोग स्वास्थ्य में, सुख में दुख, है अन्धकार में जहाँ प्रकाश, शिशु के प्राणों का साक्षी है रोदन जहाँ वहाँ क्या आश सुख की करते हो तुम, मतिमन?--छिड़ा हुआ है रण अविराम घोर द्वन्द्व का; यहाँ पुत्र को पिता भी नहीं देता स्थान।...