क्यों मुझको तुम भूल गये हो
क्यों मुझको तुम भूल गये हो? काट डाल क्या, मूल गये हो। रवि की तीव्र किरण से पीकर जलता था जब विश्व प्रखरतर, तुम मेरे छाया के तरु पर डाल पवन से धूल गये हो। विफल हुई साधना देह की, असफल आराधना स्नेह की, बिना दीप की रात गेह की, उल्टे फलकर फूल गये हो। नहीं ज्ञात, उत्पात हुआ क्यों, ऐसा निष्ठुर घात हुआ क्यों, विमल-गात अस्नात हुआ क्यों, बढ़ने को प्रतिकूल गये हो?

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