खोले अमलिन जिस दिन
खोले अमलिन जिस दिन, नयन विश्वजन के दिखी भारती की छबि, बिके लोग धन के। तन की छुटा गई सुरत, रुके चरण मायामत, रोग-शोक-लोक, वितत उठे नये रण के। तटिनी के तीर खड़े खम्भे थे, वीर बड़े, मेरु के करार चढ़े, श्रम के यौवन के।

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