सुन्दर हे, सुन्दर
सुन्दर हे, सुन्दर ! दर्शन से जीवन पर बरसे अनिश्वर स्वर। परसे ज्यों प्राण, फूट पड़ा सहज गान, तान-सुरसरिता बही तुम्हारे मंगल-पद छू कर। उठी है तरंग, बहा जीवन निस्संग, चला तुमसे मिलन को खिलने को फिर फिर भर भर।

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