Suryakant Tripathi 'Nirala'
Nirala
( 1896 - 1961 )

Suryakant Tripathi 'Nirala' (Hindi: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला') was one of the most famous figures of modern Hindi literature. He was a poet, novelist, essayist and story-writer. He was born on 21 February 1896, in a Brahmin family of Midnapore in Bengal (originally from Gadhakola, Unnao, Uttar Pradesh). He was also a regular in literary circles such as the Kavi Sammelans and gained fame from his poetry readings. Though a student of Bengali, Nirala took keen interest in Sanskrit from the very beginning. In that time, through his natural intelligence and acquired knowledge, he became an authority on various languages – Bengali, English, Sanskrit, and Hindi. More

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा। खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,...

(प्रिय) यामिनी जागी। अलस पंकज-दृग अरुण-मुख तरुण-अनुरागी। खुले केश अशेष शोभा भर रहे,...

आज प्रथम गाई पिक पञ्चम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मरुत-प्रवाह, कुसुम-तरु फूले, बौर-बौर पर भौरे झूले,...

तुम्हें खोजता था मैं, पा नहीं सका, हवा बन बहीं तुम, जब मैं थका, रुका ।...

धिक मद, गरजे बदरवा, चमकि बिजुलि डरपावे, सुहावे सघन झर, नरवा कगरवा-कगरवा ।...

समझे मनोहारि वरण जो हो सके, उपजे बिना वारि के तिन न ढूह से । सर नहीं सरोरुह, जीवन न देह में, गेह में दधि, दुग्ध; जल नहीं मेह में,...

अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात! मचलते हुए निकल आते हो; उज्जवल! घन-वन-अंधकार के साथ खेलते हो क्यों? क्या पाते हो?...

झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में, घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,...

सिन्धु के अश्रु! धारा के खिन्न दिवस के दाह! विदाई के अनिमेष नयन! मौन उर में चिह्नित कर चाह...

सिन्धु के अश्रु! धरा के खिन्न दिवस के दाह! बिदाई के अनिमेष नयन! मौन उर में चिन्हित कर चाह...