हताश
जीवन चिरकालिक क्रन्दन । मेरा अन्तर वज्रकठोर, देना जी भरसक झकझोर, मेरे दुख की गहन अन्ध- तम-निशि न कभी हो भोर, क्या होगी इतनी उज्वलता- इतना वन्दन अभिनन्दन ? हो मेरी प्रार्थना विफल, हृदय-कमल-के जितने दल मुरझायें, जीवन हो म्लान, शून्य सृष्टि में मेरे प्राण प्राप्त करें शून्यता सृष्टि की, मेरा जग हो अन्तर्धान, तब भी क्या ऐसे ही तम में अटकेगा जर्जर स्यन्दन ?

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