लघु-तटिनी, तट छाईं कलियाँ;
गूँजी अलियों की आवलियाँ।
तरियों की परियाँ हैं जल पर,
गाती हैं खग-कुल-कल-कल-स्वर,
तिरती हैं सुख-सुकर पंख-भर,
रूम घूमकर सुघर मछलियाँ।
जल-थल-नभ आनन्द-भास है,
किसी विश्वमय का विकास है,
सलिल-अनिल ऊर्मिल विलास है,
निस्तल गीति-प्रीति की तलियाँ।
परिचय से संचित सारा जग,
राग-राग से जीवन जगमग,
सुख के उठते हैं पुलकित डग,
रह जाती हैं अपल पुतलियाँ।