छाँह न छोड़ी
छांह न छोड़ी, तेरे पथ से उसने आस न तोड़ी। शाख़-शाख़ पर सुमन खिले, हवा-हवा से हिले मिले, उर-उर फिर से भरे, छिले, लेकिन उसने सुषमे, आंख न मोडी। कहीं आव, कहीं है दुराव, कहीं बढ़े चलने का चाव, पाप-ताप लेने का दाव कहीं बढ़े-बढ़े हाथ घात निगोड़ी।

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