किशोरी, रंग भरी किस अंग भरी हो
रंगभरी किस अंग भरी हो? गातहरी किस हाथ बरी हो? जीवन के जागरण-शयन की, श्याम-अरुण-सित-तरुण-नयन की, गन्ध-कुसुम-शोभा उपवन की, मानस-मानस में उतरी हो; जोबन-जोबन से संवरी हो। जैसे मैं बाजार में बिका कौड़ी मोल; पूर्ण शून्य दिखा; बाँह पकड़ने की साहसिका, सागर से उर्त्तीण तरी हो; अल्पमूल्य की वृद्धिकरी हो।

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