अनमिल-अनमिल मिलते
अनमिल-अनमिल मिलते प्राण, गीत तो खिलते। उड़ती हैं छुट-छुटकर आँखें मन के नभ पर और किसी मणि के घर झिलमिल सुख से हिलते। किससे मैं कहूँ व्यथा-- अपनी जित-विजित कथा? होगी भी अनन्यता छन की लौ के झिलते?

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