आँख लगी थी पल-भर, देखा, नेत्र छलछलाए दो आए आगे किसी अजाने दूर देश से चलकर। मौन भाषा थी उनकी, किन्तु व्यक्त था भाव,...
गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा। खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,...
आज प्रथम गाई पिक पञ्चम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मरुत-प्रवाह, कुसुम-तरु फूले, बौर-बौर पर भौरे झूले,...
समझे मनोहारि वरण जो हो सके, उपजे बिना वारि के तिन न ढूह से । सर नहीं सरोरुह, जीवन न देह में, गेह में दधि, दुग्ध; जल नहीं मेह में,...
तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुःख की छाया- जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया- ...
बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया। गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया। यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर खिलकर सुगन्ध से किसी का दिल बहल गया।...
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा। उन्ही बीजों को नये पर लगे, उन्ही पौधों से नया रस झिरा।...
अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात! मचलते हुए निकल आते हो; उज्जवल! घन-वन-अंधकार के साथ खेलते हो क्यों? क्या पाते हो?...
पर संपादकगण निरानंद वापस कर देते पढ़ सत्त्वर दे एक-पंक्ति-दो में उत्तर। लौटी लेकर रचना उदास...
पार्श्व में अन्य रख कुशल हस्त गद्य में पद्य में समाभ्यस्त। -- देखें वे; हसँते हुए प्रवर, जो रहे देखते सदा समर,...
आयेंगे कल।" दृष्टि थी शिथिल, आई पुतली तू खिल-खिल-खिल हँसती, मैं हुआ पुन: चेतन सोचता हुआ विवाह-बन्धन।...
वे जो यमुना के-से कछार पद फटे बिवाई के, उधार खाये के मुख ज्यों पिये तेल चमरौधे जूते से सकेल...
इसने ही जैसे बार-बार दूसरी शक्ति की की पुकार-- साकार हुआ ज्यों निराकार, जीवन में; यह उसी शक्ति से है वलयित...
दे, मैं करूँ वरण जननि, दुखहरण पद-राग-रंजित मरण । भीरुता के बँधे पाश सब छिन्न हों, मार्ग के रोध विश्वास से भिन्न हों,...
उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से, घर से क्रीड़ारत बालक-से, ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार! स्तब्ध गगन को करते हो तुम पार!...
दुखता रहता है अब जीवन; पतझड़ का जैसा वन-उपवन। झर-झर कर जितने पत्र नवल कर गए रिक्त तनु का तरुदल,...
सुनते सुख की वंशी के सुर, पहुँचे रत्नधर रमा के पुर; लख सादर उठी समाज श्वशुर-परिजन की; बैठाला देकर मान-पान;...
कुछ समय तक स्तब्ध हो रहे राम छवि में निमग्न, फिर खोले पलक कमल ज्योतिर्दल ध्यान-लग्न। हैं देख रहे मन्त्री, सेनापति, वीरासन बैठे उमड़ते हुए, राघव का स्मित आनन।...
कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक, ले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक। ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन...
रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर आज का तीक्ष्ण शर-विधृत-क्षिप्रकर, वेग-प्रखर, शतशेलसम्वरणशील, नील नभगर्ज्जित-स्वर,...
ऊनविंश पर जो प्रथम चरण तेरा वह जीवन-सिन्धु-तरण; तनये, ली कर दृक्पात तरुण जनक से जन्म की विदा अरुण!...
उस प्रियावरण प्रकाश में बँध, सोचता, "सहज पड़ते पग सध; शोभा को लिये ऊर्ध्व औ अध घर बाहर यह विश्व, सूर्य, तारक-मण्डल,...
भारत के नभ के प्रभापूर्य शीतलाच्छाय सांस्कृतिक सूर्य अस्तमित आज रे-तमस्तूर्य दिङ्मण्डल; उर के आसन पर शिरस्त्राण...
आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी-- छवि-विभावरी; सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी- छबि-विभावरी;...
तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुःख की छाया- जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया-...
सहज-सहज पग धर आओ उतर; देखें वे सभी तुम्हें पथ पर। वह जो सिर बोझ लिये आ रहा, वह जो बछड़े को नहला रहा,...
फिर देखी भीम मूर्ति आज रण देखी जो आच्छादित किये हुए सम्मुख समग्र नभ को, ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ बुझ कर हुए क्षीण, पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन;...
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में, घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,...
कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलनसमय, तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय! रावण? रावण लम्पट, खल कल्म्ष गताचार, जिसने हित कहते किया मुझे पादप्रहार,...