तरणि तार दो अपर पार को
तरणि तार दो अपर पार को खे-खेकर थके हाथ, कोई भी नहीं साथ, श्रम-सीकर-भरा माथ, बीच-धार, ओ! पार किया तो कानन; मुरझाया जो आनन, आओ हे निर्वारण, बिपत वार लो। पड़ी भँवर-बीच नाव, भूले हैं सभी दांव, रुकता है नहीं राव-- सलिल-सार, ओ!

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