और न अब भरमाओ
और न अब भरमाओ, पौर आओ, तुम आओ! जी की जो तुमसे चटकी है, बुद्धि-शुद्धि भटकी-भटकी है; और जनों की लट लटकी है? ऐसे अकेले बचाओ, छोड़कर दूर न जाओ। खाली पूरे हाथ गये हैं, ऊपर नये-नये उनये हैं, सुख से मिलें जो दुख-दुनये हैं, बेर न वीर लगाओ, बढ़ाकर हाथ बटाओ!

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