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आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ। न मैं देखूँ औरन को, न तोहे देखन दूँ॥ अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई। जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई॥...

एक कुसुम कमनीय म्लान हो सूख विखर कर। पड़ा हुआ था धूल भरा अवनीतल ऊपर। उसे देख कर एक सुजन का जी भर आया। वह कातरता सहित वचन यह मुख पर लाया।1।...

फ़सादे दुनिया मिटा चुके हैं हुसूले हस्ती उठा चुके हैं । खुदाई अपने में पा चुके हैं मुझे गले यह लगा चुके हैं ।।...

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को अब भी ये क़ुदरत कहाँ है आदमी की ज़ात को जिन का सारा जिस्म होता है हमारी ही तरह फूल कुछ ऐसे भी खिलते हैं हमेशा रात को...

दिल पीत की आग में जलता है हाँ जलता रहे उसे जलने दो इस आग से लोगो दूर रहो ठंडी न करो पंखा न झलो हम रात दिना यूँ ही घुलते रहें कोई पूछे कि हम को ना पूछे कोई साजन हो या दुश्मन हो तुम ज़िक्र किसी का मत छेड़ो...

गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा बे-तकल्लुफ़ दाग़-ए-मह मोहर-ए-दहाँ हो जाएगा ज़ोहरा गर ऐसा ही शाम-ए-हिज्र में होता है आब परतव-ए-महताब सैल-ए-ख़ानुमाँ हो जाएगा...

मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए...

चिर रमणीय बसंत ग्रीष्म वर्षा ऋतु सुखमय स्निग्ध शरद हेमंत शिशिर रमणीय असंशय! मधु केंद्रों को घेर बैठते ज्यों नित मधुवर ज्ञान इंद्रियों पर स्थित सोम पिपासु निरंतर!—...

अकारण उदास भर सहमी उसाँस अपने सूने कोने (कहाँ तेरी बाँह?) मैं जाता हूँ सोने। फीके अकास के तारों की छाँह में बिना आस, बिना प्यास अन्धा बिस्वास ले, कि तेरे पास आता हूँ मैं तेरा ही होने।...

तिरे मरीज़ को ऐ जाँ शिफ़ा से क्या मतलब वो ख़ुश है दर्द में उस को दवा से क्या मतलब फ़क़त जो ज़ात के हैं दिल से चाहने वाले उन्हें करिश्मा-ओ-नाज़-ओ-अदा से क्या मतलब ...

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मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं...

हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शिमाइल ठहरा लाम का ख़ूब अलिफ़ मद्द-ए-मुक़ाबिल ठहरा दीदा-ए-तर से जो दामन में गिरा दिल ठहरा बहते बहते ये सफ़ीना लब-ए-साहिल ठहरा...

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी कि है ये तूल क़िस्सा रात थोड़ी जो मय ज़ाहिद ने माँगी मस्त बोले बहुत या क़िबला-ए-हाजात थोड़ी...

हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़ न इधर के हैं इलाही न उधर के आशिक़ है वही आँख जो मुश्ताक़ तिरे दीद की हो कान वो हैं जो रहें तेरी ख़बर के आशिक़...

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा...

हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़ लोग नाहक़ ख़राब होते हैं...

है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब आदमी होता तो हम देते बराबर का जवाब जो बगूला दश्त-ए-ग़ुर्बत में उठा समझा ये मैं करती है तामीर दीवानी मिरे घर का जवाब...

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ...

गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं...

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़ तेरे कहने से रिंद जाएँगे ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़...