खुल कर गिरती है
खुल कर गिरती है जो, उड़ती फिरती है। ऐसी ही एक बात चलती है, घात खड़ी-खड़ी हाथ मलती है, तभी सह-सही दाल गलती है (जो)तिरती-तिरती है। काम इशारा नहीं आया तो जैसी माया हो, छाया हो। मुसकाया, मन को भाया जो, उससे सिरती है। विगलित जो हुआ दाप से दर प्राणों को मिला शाप से वर; गिरि के उर से मृदु-मन्द्र-स्वर, सरिता झिरती है।

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