भव अर्णव की तरणी तरुणा
भव-अर्णव की तरुणी तरुणा । बरसीं तुम नयनों से करुणा । हार हारकर भी जो जीता,-- सत्य तुम्हारी गाई गीता,-- हुईं असित जीवन की सीता, दाव-दहन की श्रावण-वरुणा । काटे कटी नहीं जो कारा उसकी हुईं मुक्ति की धारा, वार वार से जो जन हारा । उसकी सहज साधिका अरुणा ।

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