पैर उठे, हवा चली।
पैर उठे, हवा चली। उर-उर की खिली कली। शाख-शाख तनी तान, विपिन-विपिन खिले गान, खिंचे नयन-नयन प्राण, गन्ध-गन्ध सिंची गली। पवन-पवन पावन है जीवन-वन सावन है, जन-जन मनभावन है, आशा सुखशयन-पली। दूर हुआ कलुष-भेद, कण्टके निस्पन्ध छेद, खुले सर्ग, दिव्य वेद, माया हो गई भली।

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