मां, अपने आलोक निखारो
माँ अपने आलोक निखारो, नर को नरक-त्रास से वारो। विपुल दिशावधि शून्य वगर्जन, व्याधि-शयन जर्जर मानव मन, ज्ञान-गगन से निर्जर जीवन करुणाकरों उतारो, तारो। पल्लव में रस, सुरभि सुमन में, फल में दल, कलरव उपवन में, लाओ चारु-चयन चितवन में, स्वर्ग धरा के कर तुम धारो।

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