भव-सागर से पार करो हे!
भव-सागर से पार करो हे! गह्वर से उद्धार करो हे! कृमि से पतित जन्म होता है, शिशु दुर्गन्ध-विकल रोता है, ठोकर से जगता-सोता है, प्रभु, उसका निर्वार करो हे! पशुओं से संकुल सन्तुल जग, अहंकार के बाँध बंधा मग, नहीं डाल भी जो बैठे खग, ऐसे तल निस्तार करो हे! विपुल काम के जाल बिछाकर, जीते हैं जन जन को खाकर, रहूँ कहाँ मैं ठौर न पाकर, माया का संहार करो हे!

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