हंसो अधरधरी हंसी
हंसो अधर-धरी हंसी, बसो प्राण-प्राण-बसी। करुणा के रस ऊर्वर कर दो ऊसर-ऊसर दुख की सन्ध्या धूसर हीरक-तारकों-कसी। मोह छोह से भर दो, दिशा देश के स्वर हो, परास्पर्श दो पर को, शरण वरण-लाल-लसी। चरण मरण-शयन-शीर्ण, नयन ज्ञान-किरण-कीर्ण, स्नेह देह-दहन-दीर्ण, रहन विश्व-वास-फंसी।

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