पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा
पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा। भुक्ति-मुक्ति में गान तुम्हारा। आंख-आंख पर भाव बदलकर, चमके हो रंग-छवि के पलभर, पुनः खोलकर हृदय-कमल कर, गन्ध बने, अभिधान तुम्हारा। विपुल-पुलक-व्याकुल अलि के दल मानव मधु के लिए समुत्कल उठे ज्योति के पंख खमण्डल, अन्तस्तल अभियान तुम्हारा। बैठे हृदयासन स्वतनत्र-मन, किया समाहित रूप-विचिन्तन, नृम्न मृण्मरण बचे विचक्षण, ज्ञान-ज्ञान शुभ स्थान तुम्हारा।

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