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प्रिये, तुम्हारे बाहुपाश के सुख में सोया मैं उस बार किसी अतीन्द्रिय स्वप्न लोक में करता था बेसुध अभिसार! सहसा आकर प्रात वात ने बिखरा ज्यों हिमजल की डार छिन्न कर दिया मेरे स्वर्गिक स्वप्नों के सुमनों का हार!
Sumitranandan Pant
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