एक दीपक किरण–कण हूँ। धूम्र जिसके क्रोड़ में है¸ उस अनल का हाथ हूँ मैं नव प्रभा लेकर चला हूँ¸ पर जलन के साथ हूँ मैं सिद्धि पाकर भी¸ तुम्हारी साधना का —...
हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! सोने-चाँदी से नहीं किंतु तुमने मिट्टी से दिया प्यार । हे ग्राम देवता ! नमस्कार !...
शतदल सजल सहास! सलिल के सुखद स्वप्न साकार; अमिट, विकसित, सस्मित सुकुमार, विश्व के विहँसित पुलकित प्यार;...
मेघों का यह मण्डल अपार जिसमें पड़ कर तम एक बार ही कर उठता है चीत्कार!! ये काले काले भाग्य-अंक...
मत आओ आकाश, आज तुम इन्द्रधनुष का मुकुट पहन। मैं एकाकी हूँ, यह जग है प्रान्तर-सा छविहीन गहन॥...
तुम्हें आज पहिचान गया। मेरे दुख का समय आज जब-- सुख के समय समान गया॥ वर्षा के नव श्यामल तन में,...
तुम आओ प्रसून पुराने। जाता है निर्दय वसन्त यह बिना तुम्हें पहिचाने॥ जैसे संध्या गिरती है...
सभी दिखाएँ उर से छूकर फैला यह उदार अम्बर है। और बादलों के काले कारागृह में बन्दी सागर है॥...
वर्षा-नभ कैसा वन अपार! मुख जिसमें फैला कर बैठा है, हिंसक-सा यह अन्धकार॥ तारे! कुछ तो दे दो प्रकाश,...
आज बापू की विदा है! अब तुम्हारी संगिनी यमुना,त्रिवेणी,नर्मदा है! तुम समाए प्राण में पर प्राण तुमको रख न पाए...
फैला है नीला आकाश। सुरभि, तुम्हें उर में भरने को फैला है इतना आकाश॥ तुम हो एक साँस सी सुखकर...
निस्पन्द तरी, अति मन्द तरी। चल अविचल जल कल कल पर गुंजित कर गति की लघु लहरी॥ निस्पन्द तरी, अति मन्द तरी।...
मेरे सुमनों की सुरभि अरी! पंखुड़ियों का द्वार खुला है आ इस जग में मोद भरी॥ भ्रमर भावना के पंखों पर कल प्रातः आया था,...
मेरे वियोग का जीवन! विस्तृत नभ में फैला है बन कर तारों का लघु तन। सूनापन ही तो मेरे इस जीवन का है चिर धन।...
मेरे सुमनों के नवल हास! जग इतना मलीन है, इसमें-- आकर कर जाओ निवास!! वर्षा है आँसू से सभीत,...
"तू अछूत है - दूर !" सदा जो कह चिल्लाते "मुझे न छू" कह नाक-भौंह जो सदा चढ़ाते दिन में दो-दो बार स्नान हैं करने वाले ऊपर तो अति शुद्ध किन्तु है मन में काले ...
मेरा जीवन भरा हुआ है विहगों के मृदु रागों में। हृदय गूँजता है झींगुर के-- अविदित बँधे विहागों में॥...
मैं आया बन सन्ध्या अपार। नभ खोलो तारक द्वार-द्वार॥ यह है निशीथ मुझमें विलीन, प्रति पल सूनेपन से नवीन;...
इस भाँति न छिपकर आओ। अन्तिम यही प्रतीक्षा मेरी इसे भूल मत जाओ॥ रजनी के विस्तृत नभ को जब मैं दृग में भर लेता,...
जीवन-तन्त्री के तार तार। मदन-तीर की पीड़ा लेकर कसक रहे हैं बार बार॥ अपने स्थल पर ही रहकर...
मेरा जीवन लघु अंकुर है। रवि शशि की किरणों के भीतर किसका यह नव उज्ज्वल उर है? मुझ पर पृथ्वी सदृश ओसकण...
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, जानता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी, और यौवन की उभरती साँस में है वायु कितनी, इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ,...
मैं आज बनूँगा जलद जाल। मेरी करुणा का वारि सींचता रहे अवनि का अन्तराल॥ मैं आज बनूँगा जलद जाल। नभ के नीरस मन में महान...
पृथ्वी प्रशान्त है नव विवाहिता-सी अविदित चुपचाप। संध्या का यह श्याम मौन मुझको तो है अभिशाप॥...
जीवन-संगिनि चंचल हिलोर! प्रति पल विचलित गति से चल कर, अलसित आ तू इसी ओर॥ मैं भी तो तुझ-सा हूँ विचलित,...
देव, मैं अब भी हूँ अज्ञात? एक स्वप्न बन गई तुम्हारे प्रेम-मिलन की बात! तुमसे परिचित होकर भी मैं तुमसे इतनी दूर!...
आओ, मेरे सुन्दर वन में। मैं कलिका हूँ, खिल जाऊँगी अभी तुम्हारे मृदु गुंजन में॥ आओ, मेरे सुन्दर वन में।...
कोकिल की यह कोमल पुकार। कितने मधुसिक्त वसन्तों ने कर मधुर भेज दी यह पुकार॥ पर तारों की नीरव समाधि में डूबे मेरे सभी गान,...
यह कैसा आया बादल! लघु उर में गूँजा करती है एक वेदना बहुत विकल॥ नभ के इस विशाल जीवन में...
तरु के छोटे-से हे किसलय! तरु-उर में ही रहो छिपे, इच्छा के रूप रहो छविमय॥ जग कितना भीषण है इसमें,...
पर तुम मेरे पास न आये। देखो, यह खिल उठी जुही यौवन के विकसित अंग छिपाये, निराकार प्रेमी समीर...
गाओ मधु प्रिय गान! सुनने को यह नभ नीरव है गाओ मधु प्रिय गान॥ नव तरु ने अपना हृदय आज...
जीवन की एक कहानी है। प्रकृति आज माता बन कर कहती यह कठिन कहानी है॥ एक मनोहर इन्द्रधनुष फैला है नील गगन में,...
मेरे उपवन की बाला। आया द्वार वसन्, सुरभि पाने, नव कुसुमित मुख वाला॥ नभ के दर्पण में अंकित है विमल तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब।...
मैं भूल गया यह कठिन राह। इस ओर एक चीत्कार उठा, उस ओर एक भीषण कराह॥ मैं भूल गया यह कठिन राह। कितने दुख, बनकर विकल साँस...
समीरण, धीरे से बह जाओ। मैं क्या हूँ, इन कलियों के कानों में यह कह जाओ॥ वे विकसित होकर जग को...
मेरे उपवन के अधरों में, है वसन्त की मृदु मुस्कान। मलय-समीरण पाकर कोकिल, गा जीवन का मधुमय गान॥...
मैं खोज रहा हूँ कोकिल-स्वर। बतला दो मेरे नील व्योम! मैं इस संसृति से हूँ कातर॥ कितने तरु का उर सज्जित कर,...