मेरे वियोग का जीवन
मेरे वियोग का जीवन! विस्तृत नभ में फैला है बन कर तारों का लघु तन। सूनापन ही तो मेरे इस जीवन का है चिर धन। अंतस्तल में रोता है कितनी पीड़ाओं का घन!! वन में भी तो मधुऋतु का हो जाता है आवर्तन। पर उजड़ा ही रहता है मेरी आशा का उपवन!! मेरे वियोग के नभ में कितना दुख का कालापन! क्या विह्वल विद्युत ही में होंगे प्रियतम के दर्शन?

Read Next