जीवन-तन्त्री के तार तार
जीवन-तन्त्री के तार तार। मदन-तीर की पीड़ा लेकर कसक रहे हैं बार बार॥ अपने स्थल पर ही रहकर छूते हैं विस्तृत नभ अपार। प्रति पल आकर पहन पहन-- जाते ध्वनियों के हिले हार॥ नव-बाला के यौवन से साकार और कुछ निराकार। मीड़ वेदना है, उसमें सुख-- स्वर्ग तड़पता बार बार। जीवन-तन्त्री के तार तार।

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