देव, मैं अब भी हूँ अज्ञात
देव, मैं अब भी हूँ अज्ञात? एक स्वप्न बन गई तुम्हारे प्रेम-मिलन की बात! तुमसे परिचित होकर भी मैं तुमसे इतनी दूर! बढ़ना सीख-सीख कर मेरी आयु बन गई क्रूर!! मेरी साँस कर रही मेरे जीवन पर आघात॥ देव, मैं अब भी हूँ अज्ञात? यह ज्योत्सना तो देखो, नभ की बरसी हुई उमंग, आत्मा सी बन कर छूती है मेरे व्याकुल अंग। आओ, चुम्बन सी छोटी है यह जीवन की रात॥ देव, मैं अब भी हूँ अज्ञात?

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