पर तुम मेरे पास न आये
पर तुम मेरे पास न आये। देखो, यह खिल उठी जुही यौवन के विकसित अंग छिपाये, निराकार प्रेमी समीर आया है सौरभ-साज सजाये, मैंने कितनी बार साँस के-- शत सन्देश स्वयं दुहराये, तारे हैं अपने दृग तारों-- की धाराओं पर तैराये। पर तुम मेरे पास न आये॥ कोकिल की कोमल पुकार ने पुष्प-शरीर वसन्त बुलाये, उषा-बाल की प्रभा देख बादल ने कितने वेष बनाये! मैंने कितने रूप रखे पर क्या न तुम्हें वे कुछ भी भाये? जीवन मे साँसों की गति से कितनी हूँ मैं व्यथा छिपाये! पर तुम मेरे पास न आये॥

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