मेरा जीवन भरा हुआ है
मेरा जीवन भरा हुआ है विहगों के मृदु रागों में। हृदय गूँजता है झींगुर के-- अविदित बँधे विहागों में॥ देह सिली है मुझसे, इन ढीली साँसों के धागों में। मेरी इच्छा लेकर यह नभ भागा चार विभागों में॥ ये पल्लव हिल उठे, कौन-सा सुख दे गया वसन्त-समीर। क्षितिज, तोड़ दो आज प्रेम से मेरी पृथ्वी का प्राचीर॥

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