मेरे उपवन के अधरों में
मेरे उपवन के अधरों में, है वसन्त की मृदु मुस्कान। मलय-समीरण पाकर कोकिल, गा जीवन का मधुमय गान॥ नवल प्रसूनों में फूटा है, केवल दो क्षण का अभिमान। (लघुतम दो क्षण का अभिमान) दो क्षण में ही छू आई है सुरभि विश्व के अगणित प्राण॥ (सुरभि विश्व के पुलकित प्राण) इतना-सा जीवन पर कितना विस्तृत है जीवन का गान। मेरे जीवन के अधरों में है मेरे सुख की मुस्कान॥

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