मेरे उपवन की बाला
मेरे उपवन की बाला। आया द्वार वसन्, सुरभि पाने, नव कुसुमित मुख वाला॥ नभ के दर्पण में अंकित है विमल तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब। सभी दिशाओं ने पहनी है आज तुम्हारी ही माला॥ सुरभि-सजे नव स्वच्छ शरद-- बादल का ले लघुतम परिधान। शीतल करने आई हो जलते जग की जीवन-ज्वाला? प्रकृति प्रकट हो खोज रही थी पुरुष-प्रणय का दिव्य विधान। श्वेताक्षर में किसने लिख यह रूप तुम्हें ही दे डाला? ज्योत्स्ना का यह शस्य आज, मेरे जीवन में करे विलास। जुही, तुम्हारी माला शोभित-- हो जग में बन वनमाला॥ मेरे उपवन की बाला।

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