मेरे सुमनों के नवल हास
मेरे सुमनों के नवल हास! जग इतना मलीन है, इसमें-- आकर कर जाओ निवास!! वर्षा है आँसू से सभीत, शीतल साँसों से बना शीत; दुख की ज्वालाओं में हँसता-- ग्रीष्म, यही है जग विलास॥ यह प्रथित पवन है निराकार, इसमें तुम भर लो ओ अपार! तुमसे सुरभित हो जावे-- मेरे जीवन की साँस साँस॥ मेरे सुमनों के नवल हास!

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