पृथ्वी प्रशान्त है नव विवाहिता-सी
पृथ्वी प्रशान्त है नव विवाहिता-सी अविदित चुपचाप। संध्या का यह श्याम मौन मुझको तो है अभिशाप॥ निष्ठुर प्रेमी-सा प्रकाश है चला गया किस ओर! छोटे छोटे क्षण भी अब बढ़ बढ़ कर हुए कठोर॥ कौन समय होगा, आलोकित होगा विषम विषाद! देगी पॄथ्वी पुष्प-मुखों से सरस सुरभि-संवाद!!

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