किरण–कण
एक दीपक किरण–कण हूँ। धूम्र जिसके क्रोड़ में है¸ उस अनल का हाथ हूँ मैं नव प्रभा लेकर चला हूँ¸ पर जलन के साथ हूँ मैं सिद्धि पाकर भी¸ तुम्हारी साधना का — ज्वलित क्षण हूँ। एक दीपक किरण–कण हूँ। व्योम के उर में¸ अपार भरा हुआ है जो अंधेरा और जिसने विश्व को¸ दो बार क्या¸ सौ बार घेरा उस तिमिर का नाश करने के लिए¸ — मैं अटल प्रण हूँ। एक दीपक किरण–कण हूँ। शलभ को अमरत्व देकर¸ प्रेम पर मरना सिखाया सूर्य का संदेश लेकर¸ रात्रि के उर में समाया पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी¸ — तुम्हारी ही शरण हूँ। एक दीपक किरण–कण हूँ।

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