तरु के छोटे-से हे किसलय
तरु के छोटे-से हे किसलय! तरु-उर में ही रहो छिपे, इच्छा के रूप रहो छविमय॥ जग कितना भीषण है इसमें, घृणा, वेदना, भीषण भय, जीवन क्या है? पीड़ा का-- संघर्ष और दुख का अभिनय॥ एक उमंग रहो, पृथ्वी की-- सृजन शक्ति के मधु संचय! आज प्रकृति का सब रहस्य तुमको देगा अपना परिचय॥ तरु के छोटे-से हे किसलय!

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