आज केतकी फूली!
आज केतकी फूली ! नभ के उज्ज्वल तारों से हो - निर्मित जग में झूली । आज केतकी फूली ! अन्तरिक्ष का बिखरा वैभव पृथ्वी पर संचित है, इसीलिए यह कलिका नभ-छवि ले भू पर कुसुमित है, पवन चूम जाता है, मेरी इच्छा से परिचित है, इस मिलाप मे ही सारे जीवन का सुख अंकित है । मैंने आज प्रेम की उँगली से वह चिर छवि छू ली ! आज केतकी फूली !

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