आओ, मेरे सुन्दर वन में
आओ, मेरे सुन्दर वन में। मैं कलिका हूँ, खिल जाऊँगी अभी तुम्हारे मृदु गुंजन में॥ आओ, मेरे सुन्दर वन में। उषा लिये है कितनी ज्वाला! भू पर है ओसों की माला, इन दोनों की छाया है-- मेरे नव विकसित कोमल तन में॥ आओ, मेरे सुन्दर वन में। रूप-गंध का पीकर प्याला, भूल रही है तितली-बाला, मैं तो लीन हो रही हूँ-- अ-मलीन तुम्हारे अभिनन्दन में॥ आओ, मेरे सुन्दर वन में।

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