जीवन-संगिनि चंचल हिलोर
जीवन-संगिनि चंचल हिलोर! प्रति पल विचलित गति से चल कर, अलसित आ तू इसी ओर॥ मैं भी तो तुझ-सा हूँ विचलित, कठिन शिलाओं से चिर परिचित; प्रतिबिम्बित नभ-सा चंचल चित, फेनिल के आँसू से चर्चित; जान न पाता हूँ जीवन का-- किस स्थल पर है सुखद छोर॥ सुनें परस्पर सुख-ध्वनियाँ हम, मैं न अधिक हूँ, और न तू कम; आज न कर पाऊँगा संयम, मैं न बनूँ तो, तू बन प्रियतम; मृदु सुख बन जावे इस क्षण में-- विरह-वेदना अति कठोर। जीवन-संगिनि चंचल हिलोर॥

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