सभी दिखाएँ उर से छूकर
सभी दिखाएँ उर से छूकर फैला यह उदार अम्बर है। और बादलों के काले कारागृह में बन्दी सागर है॥ कैसा वह प्रदेश है, जिसमें-- एक उषा, वह भी नश्वर है। उज्ज्वल एक तड़ित है जिसका-- जीवन भी केवल क्षण भर है!! इस जीवन की व्यथित कल्पना आज समय-गति-सी चंचल है! नभ से सीमित आज न जाने क्यों मेरा यह स्वर निर्बल है!!

Read Next