एक दीपक किरण–कण हूँ।
धूम्र जिसके क्रोड़ में है¸ उस अनल का हाथ हूँ मैं
नव प्रभा लेकर चला हूँ¸ पर जलन के साथ हूँ मैं
सिद्धि पाकर भी¸ तुम्हारी साधना का —...
"तू अछूत है - दूर !" सदा जो कह चिल्लाते
"मुझे न छू" कह नाक-भौंह जो सदा चढ़ाते
दिन में दो-दो बार स्नान हैं करने वाले
ऊपर तो अति शुद्ध किन्तु है मन में काले ...