कोकिल की यह कोमल पुकार
कोकिल की यह कोमल पुकार। कितने मधुसिक्त वसन्तों ने कर मधुर भेज दी यह पुकार॥ पर तारों की नीरव समाधि में डूबे मेरे सभी गान, असहाय हृदय की हूक हाय! आँसू बन आई है अजान। यह जीवन तो दंशन-सा है, विष-सा साँसों का है उभार॥ क्या मधुर राग! यह तो मेरे सुख का है अपहृत घन महान, ये विहग अलग हो उड़े सभी ले मुझ से मेरे मधुर गान। यह गान, आज है सोई-सी स्मृति का कितना निष्ठुर प्रहार!!

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