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हार गई मैं तुम्हें जगाकर, धूप चढ़ी प्रखर से प्रखरतर। वर्जन के जो वज्र-द्वार हैं, क्या खुलने के भी किंवार हैं?...

फिर सवाँर सितार लो! बाँध कर फिर ठाट, अपने अंक पर झंकार दो! शब्द के कलि-कल खुलें,...

मृत्यु-निर्वाण प्राण-नश्वर कौन देता प्याला भर भर? मृत्यु की बाधाएँ, बहु द्वन्द पार कर कर जाते स्वच्छन्द...

उनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार। समझो वर निर्जर रण; करो बार बार स्मरण,...

मरण को जिसने वरा है उसी का जीवन भरा है परा भी उसकी, उसी के अंक सत्य यशोधरा है ।...

और और छबि रे यह, नूतन भी कवि, रे यह और और छबि! समझ तो सही...

हारीं नहीं, देख, आँखें-- परी नागरी की; नभ कर गंई पार पाखें परी नागरी की।...

मेरी छबि उर-उर में ला दो! मेरे नयनों से ये सपने समझा दो! जिस स्वर से भरे नवल नीरद, हुए प्राण पावन गा हुआ हृदय भी गदगद,...

मुक्तादल जल बरसो, बादल, सरिसर कलकलसरसो बादल! शिखि के विशिख चपल नर्तन वन, भरे कुंजद्रुम षटपद गुंजन,...

पद्मा के पद को पाकर हो सविते, कविता को यह वर दो। वारिज के दृग रवि के पदनख निरख-निरखकर लहें अलख सुख;...

वासना-समासीना, महती जगती दीना। जलद-पयोधर-भारा, रवि-शशि-तारक-हारा,...

साध पुरी, फिरी धुरी। छुटी गैल-छैल-छुरी। अपने वश हैं सपने, सुकर बने जो न बने,...

रुखी री यह डाल, वसन वासन्ती लेगी। देख खड़ी करती तप अपलक, हीरक-सी समीर माला जप। शैल-सुता अपर्ण - अशना,...

समझा जीवन की विजया हो। रथी दोषरत को दलने को विरथ व्रती पर सती दया हो। पता न फिर भी मिला तुम्हारा,...

वेदना बनी; मेरी अवनी। कठिन-कठिन हुए मृदुल पद-कमल विपद संकल...

याद है वह हरित दिन बढ़ रहा था ज्योति के जब सामने मैं देखता दूर-विस्तॄत धूम्र-धूसर पथ भविष्यत का विपुल...

भाव जो छलके पदों पर, न हों हलके, न हों नश्वर। चित्त चिर-निर्मल करे वह, देह-मन शीतल करे वह, ...

तपी आतप से जो सित गात, गगन गरजे घन, विद्युत पात। पलटकर अपना पहला ओर, बही पूर्वा छू छू कर छोर;...

घन तम से आवृत धरणी है; तुमुल तरंगों की तरणी है। मन्दिर में बन्दी हैं चारण, चिघर रहे हैं वन में वारण,...

पथ पर मेरा जीवन भर दो, बादल हे अनन्त अम्बर के! बरस सलिल, गति ऊर्मिल कर दो! तट हों विटप छाँह के, निर्जन,...

जैसे हम हैं वैसे ही रहें, लिये हाथ एक दूसरे का अतिशय सुख के सागर में बहें। मुदें पलक, केवल देखें उर में,-...

बीन वारण के वरण घन, जो बजी वर्षित तुम्हारी, तार तनु की नाचती उतरी, परी, अप्सरकुमारी।...

नयनों के डोरे लाल गुलाल-भरी खेली होली ! प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली, एक वसन रह गई मंद हँस अधर-दशन अनबोली कली-सी काँटे की तोली !...

सुख का दिन डूबे डूबे जाए । तुमसे न सहज मन ऊब जाए । खुल जाए न मिली गाँठ मन की, लुट जाए न उठी राशि धन की,...

बुझे तृष्णाशा-विषानल झरे भाषा अमृत-निर्झर, उमड़ प्राणों से गहनतर छा गगन लें अवनि के स्वर । ओस के धोए अनामिल पुष्प ज्यों खिल किरण चूमे, गंध-मुख मकरंद-उर सानन्द पुर-पुर लोग घूमे,...

मधुर मलय में यहीं गूँजी थी एक वह जो तान लेती हिलोरें थी समुद्र की तरंग सी,-- उत्फुल्ल हर्ष से प्लावित कर जाती तट।...

कैसे हुई हार तेरी निराकार, गगन के तारकों बन्द हैं कुल द्वार? दुर्ग दुर्घर्ष यह तोड़ता है कौन? प्रश्न के पत्र, उत्तर प्रकृति है मौन;...

’अभी और है कितनी दूर तुम्हारा प्यारा देश?’-- कभी पूछता हूँ तो तुम हँसती हो प्रिय, सँभालती हुई कपोलों पर के कुंचित केश! मुझे चढ़ाया बाँह पकड़ अपनी सुन्दर नौका पर,...

प्रिय के हाथ लगाये जागी, ऐसी मैं सो गई अभागी। हरसिंगार के फूल झर गये, कनक रश्मि से द्वार भर गये,...

हे मानस के सकाल ! छाया के अन्तराल ! रवि के, शशि के प्रकाश, अम्बर के नील भास,...

मेरे इस जीवन की है तू सरस साधना कविता, मेरे तरु की है तू कुसुमित प्रिये कल्पना-ज्ञतिका; मधुमय मेरे जीवन की प्रिय है तू कमल-कामिनी, मेरे कुंज-कुटीर-द्वार की कोमल-चरणगामिनी,...

हुए पार द्वार-द्वार, कहीं मिला नहीं तार। विश्व के समाराधन हंसे देखकर उस क्षण,...

आशा आशा मरे लोग देश के हरे! देख पड़ा है जहाँ, सभी झूठ है वहाँ,...

तुमने स्वर के आलोक-ढले गाये हैं गाने गले-गले। बचकर भव की भंगुरता से रागों के सुमनों के बासे...

श्याम-श्यामा के युगल पद, कोकनद मन के विनिर्मद। हृदय के चन्दन सुखाशय, नयन के वन्दन निरामय,...

जहाँ हृदय में बाल्यकाल की कला कौमुदी नाच रही थी, किरणबालिका जहाँ विजन-उपवन-कुसुमों को जाँच रही थी, जहाँ वसन्ती-कोमल-किसलय-वलय-सुशोभित कर बढ़ते थे, जहाँ मंजरी-जयकिरीट वनदेवी की स्तुति कवि पढ़ते थे,...

शिविर की शर्वरी हिंस्र पशुओं भरी। ऐसी दशा विश्व की विमल लोचनों देखी, जगा त्रास, हृदय संकोचनों...

गीत-गाये हैं मधुर स्वर, किरण-कर वीणा नवलतर। ताकते हैं लोग, आये कहाँ तुम, कैसे सुहाये,...

भजन कर हरि के चरण, मन! पार कर मायावरण, मन! कलुष के कर से गिरे हैं देह-क्रम तेरे फिरे हैं,...

अलि की गूँज चली द्रुम कुँजों। मधु के फूटे अधर-अधर धर। भरकर मुदे प्रथम गुंजित-स्वर छाया के प्राणों के ऊपर,...