रूखी री यह डाल
रुखी री यह डाल, वसन वासन्ती लेगी। देख खड़ी करती तप अपलक, हीरक-सी समीर माला जप। शैल-सुता अपर्ण - अशना, पल्लव -वसना बनेगी- वसन वासन्ती लेगी। हार गले पहना फूलों का, ऋतुपति सकल सुकृत-कूलों का, स्नेह, सरस भर देगा उर-सर, स्मर हर को वरेगी। वसन वासन्ती लेगी। मधु-व्रत में रत वधू मधुर फल देगी जग की स्वाद-तोष-दल, गरलामृत शिव आशुतोष-बल विश्व सकल नेगी, वसन वासन्ती लेगी।

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