आवेदन
फिर सवाँर सितार लो! बाँध कर फिर ठाट, अपने अंक पर झंकार दो! शब्द के कलि-कल खुलें, गति-पवन-भर काँप थर-थर मीड़-भ्रमरावलि ढुलें, गीत-परिमल बहे निर्मल, फिर बहार बहार हो! स्वप्न ज्यों सज जाय यह तरी, यह सरित, यह तट, यह गगन, समुदाय। कमल-वलयित-सरल-दृग-जल हार का उपहार हो!

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