प्रिय के हाथ लगाये जागी,
प्रिय के हाथ लगाये जागी, ऐसी मैं सो गई अभागी। हरसिंगार के फूल झर गये, कनक रश्मि से द्वार भर गये, चिड़ियों के कल कण्ठ मर गये, भस्म रमाकर चला विरागी। शिशु गण अपने पाठ हुए रत, गृही निपुण गृह के कर्मों नत, गृहिणी स्नान-ध्यान को उद्यत, भिक्षुक ने घर भिक्षा माँगी।

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