साध पुरी, फिरी धुरी
साध पुरी, फिरी धुरी। छुटी गैल-छैल-छुरी। अपने वश हैं सपने, सुकर बने जो न बने, सीधे हैं कड़े चने, मिली एक एक कुरी। सबकी आँखों उतरे साख-साख से सुथरे, सुए के हुए खुथरे ऊपर से चली खुरी। सजधजकर चले चले भले-भले गले-गले थे जो इकले-दुकले, बातें थीं भली-बुरी।

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