विनय
पथ पर मेरा जीवन भर दो, बादल हे अनन्त अम्बर के! बरस सलिल, गति ऊर्मिल कर दो! तट हों विटप छाँह के, निर्जन, सस्मित-कलिदल-चुम्बित-जलकण, शीतल शीतल बहे समीरण, कूजें द्रुम-विहंगगण, वर दो! दूर ग्राम की कोई वामा आये मन्दचरण अभिरामा, उतरे जल में अवसन श्यामा, अंकित उर-छबि सुन्दरतर हो!

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