हार गई मैं तुम्हें जगाकर,
हार गई मैं तुम्हें जगाकर, धूप चढ़ी प्रखर से प्रखरतर। वर्जन के जो वज्र-द्वार हैं, क्या खुलने के भी किंवार हैं? प्राण पवन से पार-पार हैं, जैसे दिनकर निष्कर, निश्शर। पंच विपंची से विहीन हैं; जैसे जन आयु से छीण हैं; सभी विरोधाभास पीन हैं; असमय के जैसे धाराधर।

Read Next