समझा जीवन की विजया हो
समझा जीवन की विजया हो। रथी दोषरत को दलने को विरथ व्रती पर सती दया हो। पता न फिर भी मिला तुम्हारा, खोज-खोजकर मानव हारा; फिर भी तुम्हीं एक ध्रुवतारा, नैश पथिक की पिक अभया हो। ऋतुओं के आवर्त-विवर्तों, लिये चलीं जो समतल-गर्तों, खुलती हुई मर्त्य के पर्तों कला सफल तुम विमलतया हो।

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