नयनों के डोरे लाल
नयनों के डोरे लाल गुलाल-भरी खेली होली ! प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली, एक वसन रह गई मंद हँस अधर-दशन अनबोली कली-सी काँटे की तोली ! मधु-ऋतु-रात मधुर अधरों की पी मधुअ सुधबुध खो ली, खुले अलक मुंद गए पलक-दल श्रम-सुख की हद हो ली-- बनी रति की छवि भोली!

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