आशा आशा मरे
आशा आशा मरे लोग देश के हरे! देख पड़ा है जहाँ, सभी झूठ है वहाँ, भूख-प्यास सत्य, होंठ सूख रहे हैं अरे! आस कहाँ से बंधे? सांस कहाँ से सधे? एक एक दास, मनस्काम कहाँ से सरे? रूप-नाम हैं नहीं, कौन काम तो सही? मही-गगन एक, कौन पैर तो यहाँ धरे?

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